रविवार, 28 नवंबर 2010

घूम रही सड़कों पर गैया


(मित्र लेखक ब्लोगर भाई शरद कोकस ने मुझे प्रेरित किया कि गायों की बदहाली पर भी कुछ्  लिखू. वैसे इसके पहले भी लिख चुका हूँ, मगर उन्ही भावो को नए सिरे से फिर लिख रहा हूँ. मै सोचता हूँ, कि गाय पर बार-बार लिखा जाना चाहिए. मैंने गो-चालीसा लिखी है, गो आरती भी लिखी है, गीत लिखे, पद भी लिखे. मन नहीं माना तो पूरा उपन्यास ही लिख रहा हूँ-देवनार के जंगल.गाय  की दुरावस्था की ओर समाज का ध्यान आकर्षित करना लेखको का भी फ़र्ज़ है. इसी कड़ी में एक बार फिर प्रस्तुत है एक गीत- )
घूम रही सड़कों पर गैया...
 घूम रही सड़कों पर  गैया,
शर्म करो गोपालक कुछ तो,  मरी जा रही तेरी मैया.

दूध पी रहे हो रोजाना, अच्छा लगता सेहत पाना...?
लेकिन गायों की भी सोचो, इतना ज्यादा भी मत नोचो.
दूध-मलाई तुम खाते हो, और प्रभु के गुण गाते हो. 
पालीथिन-कचरा खा कर
बीमार पड़ रही तेरी  दैया......

गाय विश्व की माता है, तुझे समझ न आता है.
स्वारथ की चर्बी का मारा, धन के आगे तू तो हारा.
गायों की न सेवा करता, घी पाने की खातिर मरता.
कितना कपटी और कसाई, दुबली होती जाती माई.
माँ कहते हो लेकिन माँ का,
ध्यान नहीं रखते हो भैया..

कहाँ गया पहले का भारत, अब तो बस गारत ही गारत.
बढ़ता गो-माँस का भक्षण, मिलता सरकारी संरक्षण .
रोजाना कटती है माता, चुप क्यों बैठे भाग्यविधाता.
बढ़ते जाते कत्लगाह अब, 
नाच रहे सब  ता-ता थैया.?

गाय हमारी आन बनेगी, भारत की पहचान बनेगी. 
गाय बचेगी देश बचेगा, तब सुन्दर परिवेश बचेगा.
गो पालन करते है आप,  इसकी बदहाली है पाप.
गाय दुखी है गोपालक की,
डूब जायेगी इक दिन  नैया.

घूम रही सड़कों पर गैया.
शर्म करो गोपालक कुछ तो,  मरी जा रही तेरी मैया.

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